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ये जो बात रह गयी है मेरे लब पे थरथराती.
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ये जो बात रह गयी है मेरे लब पे थरथराती.
थी तेरे ही तो मुताल्लिक़ तुझे किस तरह बताती.
हुई बार ज़िन्दगी है तेरे बिन ये जानलेवा,
परे आज रख रही हूँ इसे कब तलक उठाती. बार-भार
है अजीब सोजे उल्फत लगी आग जिस्मो जाँ में,
थकी आंसुओं से पल पल मैं हूँ बारहा बुझाती. सोजे उल्फत-प्रेमाग्नि
मुझे तुम भुला सके हो इसे कैसे मान लूँ मैं,
मुझे तो हुनर न आया तुम्हे जिससे मैं भुलाती.
हूँ मैं धार पर दिए सी, बही वक़्त की नदी में,
कभी मौज से हूँ डगमग कभी लौ है टिमटिमाती.
न शऊरे इश्क तुमको हुआ आज तक मेहरबां,
तुम्हे क्या ग़ज़ल जंचेगी, सुनो तुम ठकुरसुहाती.