“राज प्रकट हो ही जाता है”
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राजनीति महाचुम्बक है जिससे हर कोई आकर्षित होता है,
कुर्सी मिल जाती जिसे इसमें वो सपरिवार हर्षित होता है !
राजा चले गए परन्तु अपनी शाही राजवृत्ति यहाँ छोड़ गए,
महाराजा हो रहे वो जो वाचाली से जनता का रुख मोड़ रहे !
यथा चले गए अंग्रेज़ किन्तु अंग्रेजी भाषा थोप गए,
इसी भाँति मुग़ल भी पारसी-उर्दू का झंडा रोप गए !
“राज” शब्द अमर है जो अब तक धन-बल के बूते चल रहा,
आसन अरु सिंहासन का क्रय-विक्रय बे-रोकटोक फल रहा !
(अंग्रेजों भारत छोड़ो, प्रजातंत्र लाओ, गरीबी हटाओ, दूर करो
निरक्षरता, सबको करो शिक्षित, सम्पूर्ण स्वाधीनता लाओ,
त्यागो विदेशी सामग्री, स्वदेशी ही अपनाओ, प्रोत्साहन दो
लघु-उद्योगों को, दूर करो बेकारी सबकी, रोटी-रोजी-कपड़ा दो,
सुलभ करो आवास सभी को, अधिकतम शिक्षालय खुलवाओ),
ऐसे नारे देकर देशभक्तों ने अपने जीवन का बलिदान दिया,
वर्षों तक आन्दोलन करके अंततः इस देश को स्वाधीन किया !
किन्तु तभी से धन-बल के बूते पूर्ण आपाधापी पनपने लगी,
अवसरवादी नेताओं के मुँह से राज करने की लार टपकने लगी !
भ्रामक भाषणबाज़ी अरु वाचाली से आसन अरु शासन बिकने लगा,
आम चुनाव के नाम पर कुर्सी का क्रय-विक्रय होता दिखने लगा !
आपाधापी, भाई-भतीजावाद से ही बस लगा पनपने भ्रष्टाचार,
जो इतना अपरिहार्य हुआ कि कहलाने लगा वो शिष्टाचार !
वंशवाद चल पड़ा देश में, शासन में सिंहासन हथियाने का,
गांधी-नेहरु के नाम पर जनता का भारी बहुमत पाने का !
श्वेत वस्त्र खादी के पहनना नेतागिरी का परिधान हुआ,
सर पर खादी की टोपी रखने वालों को मिथ्या गुमान हुआ !
आज देश में हाहाकार है भ्रष्टाचार को समूल हटाने की,
किन्तु असंभव सा है ऐसा, न कोई युक्ति इसे मिटाने की !
(मेरा-तेरा, हमारा-तुम्हारा, अपना-पराया, आपा-धापी,
ऊँच-नीच,लेन-देन, हानि-लाभ, अमीर-गरीब,धर्मी-पापी),
जब तक इन शब्दों के भाव रहेंगे जीवन-यापन में,
भ्रष्टाचार रहेगा अमिट आरम्भ से लेके समापन में !
इसी लिए श्री अन्ना हजारे जैसे भी इस मुद्दे से दूर हुए,
राजनीति के चुम्बक से उसमें खिंचने को मजबूर हुए !
पता नहीं कैसे वो चुनाव लड़ेंगे बिना दो-नम्बरी पैसों के,
जब तक हाथ पसारेंगे नहिं धन लेने को ऐसे-वैसों से ?
यदि चुनाव वो जीत गए तो जाना ही होगा संसद में,
जहां शातिरों के बीच कैसे सफल होंगे वो मक्सद में ?
कुछ भी हो अंततः वो भी राजनीतिक चुम्बक से बच न सके,
अंतर्मन का छुपा राज हो गया प्रकट ही ताकि हो अपच न सके !
भारत सोने की चिड़िया है जो प्रायः सोती ही रहती है,
जो भी चिड़ा आ बैठा समीप उसकी ही होती रहती है !
“सोने की चिड़िया जान, सोनिया भी उस पर बैठ गई,
भारत की मर्दानगी की ऐसे मानो पूर्ण रूप से पैंठ गई !
राहुल को भी बुला लिया संसद में कद को ऊंचा करने,
वंशवाद का मनका बनकर उस माला को समूचा करने !
इसी प्रकार पनपती रहेगी वंशवाद की माला में कड़ी,
जनता मात्र दर्शक ही रहेगी, इसे तोड़ने की किसे पड़ी !
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अति सुन्दर रचना और स्थति का विवरण
विश्लेषण अर्थपूर्ण और मनभावन
रचना के लिए हार्दिक अभिवादन
पढ़कर यह रचना आपकी मन में ख्याल जो उभरा है
शायद मन में पनप रहा था उसको ही अब लिक्खा है
कोंग्रेसी राजनीति है जो देश हमारा भ्रष्ट करे
हमरा देश नही सुधरेगा जब तक कांग्रेस राज करे
जनता जब इनको फेंकेगी जो भी हो अच्छा होगा
अपने आप ही देश में अपने राम का राज शुरू होगा ….
@Vishvnand, साभार हार्दिक
धन्यवाद, महोदय !