« मुफलिस पेट भरेंगे खाकर क्या बातों के लच्छे. | – फूलो से की दोस्ती काँटों को नागवार गुजरी– » |
ओझल है तू नज़र से इधर बेनिशान हम.
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ओझल है तू नज़र से इधर बेनिशान हम.
बेचारगी का जैसे मुजस्सिम बयान हम. बेनिशान-नगण्य, मुजस्सिम-साक्षात्
तुझसे ये दिल लगा न सकेंगे हम ऐ जहां ,
पहले ही दे चुके हैं किसी को ज़ुबान हम.
मौसम की मार खा के रहे छीज ईंट ईंट,
अब हो गए क़दीम फ़सुर्दा मकान हम. क़दीम-पुराना , फ़सुर्दा-क्षतिग्रस्त,जर्जर
कोई बचा न साथ, न रहज़न ,न राहबर ,
किसको सुना के दिल की मिटायें थकान हम.
औरों के दुःख से आज भी दुखता है क्या करें,
पाए है दिल को सबके मुआफिक बना न हम.
दामन समेट कर के कहाँ तुम चले गए,
पायेंगे अब सफ़र में कहाँ सायबान हम. सायबान-छाया
जज़्बात मुद्दतों से बरफ में दबे पड़े,
लायें कहाँ से, लायें जो लफ़्ज़ों में जान हम.
अब तक तो आदमी भी मुक़म्मल न बन सके,
बनने को फिर भी चल दिए हस्ती महान हम.
वाह वाह बहुत खूब
“अब तक तो आदमी भी मुक़म्मल न बन सके,
बनने को फिर भी चल दिए हस्ती महान हम.”
Commends
करते रहे सितम हम ही पृथ्वी पर यहाँ
पृथ्वी करे प्रहार हमें बचाए क्यूँ भगवन
तुझसे ये दिल लगा न सकेंगे हम ऐ जहां ,
पहले ही दे चुके हैं किसी को ज़ुबान हम.
बहुत खूब