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ओझल है तू नज़र से इधर बेनिशान हम.

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ओझल है तू नज़र से इधर बेनिशान हम.

बेचारगी का जैसे मुजस्सिम बयान हम.  बेनिशान-नगण्य, मुजस्सिम-साक्षात्

 

तुझसे ये दिल लगा न सकेंगे हम ऐ जहां ,

पहले ही दे चुके हैं किसी को ज़ुबान हम.

 

मौसम की मार खा के रहे छीज  ईंट ईंट,

अब हो गए क़दीम फ़सुर्दा मकान हम.  क़दीम-पुराना , फ़सुर्दा-क्षतिग्रस्त,जर्जर 

 

कोई बचा न साथ, न रहज़न ,न राहबर ,

किसको सुना के दिल की मिटायें थकान हम.

 

औरों के दुःख से आज भी दुखता है क्या करें,

पाए है दिल को सबके मुआफिक बना न हम.

 

दामन समेट कर के कहाँ तुम चले गए,

पायेंगे अब सफ़र में कहाँ सायबान हम.  सायबान-छाया

 

जज़्बात मुद्दतों से बरफ में दबे पड़े,

लायें कहाँ से, लायें जो लफ़्ज़ों में जान हम.

 

अब तक तो आदमी भी मुक़म्मल न बन सके,

बनने को फिर भी चल दिए हस्ती महान हम.

2 Comments

  1. Vishvnand says:

    वाह वाह बहुत खूब
    “अब तक तो आदमी भी मुक़म्मल न बन सके,
    बनने को फिर भी चल दिए हस्ती महान हम.”
    Commends

    करते रहे सितम हम ही पृथ्वी पर यहाँ
    पृथ्वी करे प्रहार हमें बचाए क्यूँ भगवन

  2. chandan says:

    तुझसे ये दिल लगा न सकेंगे हम ऐ जहां ,

    पहले ही दे चुके हैं किसी को ज़ुबान हम.
    बहुत खूब

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