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प्रेम मंदिर
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प्रेम मंदिर
कब तक यूँ छींटे उड़ाते रहोगे
घर की कलह क्यूँ सबसे कहोगे
सोचो अगर सब कुछ ऐसे चलेगा
कुनबा जो बिखरा, फिर कैसे जुड़ेगा.
तोड़ने को दुश्मन बहुत इस शहर में
लड़ाने को बैठे हैं अपनेही घर में
तमाशा बना , मज़ा लेते तुम्हारा
मिठाई खिलाते मिलाके जहर में
समझो बस इतना, काम आयेंगे अपने
दिखाए तुम्हे चाहे,कोई कितने ही सपने
क्षणिक पल की गर्मी में रिश्ते ना तोड़ो
बरसो बने थे ,इन्हें फिर से जोड़ो
सुन्दर आदरपूर्ण निवेदन
रिश्तों की कद्र का जरूर होना है चिंतन और पालन
रिश्तों को तोडना आसान है किन्तु जोड़ना कठिन |औंर उन्हें निभाना भी आसान नहीं है |भावनाओं का सम्मान तथा अधिकारों और कर्तव्यों का संतुलन जरूरी है | आपने बिलकुल सही कहा :-
क्षणिक पल की गर्मी में रिश्ते ना तोड़ो
बरसो बने थे ,इन्हें फिर से जोड़ो
सुन्दर रचना बधाई |
achchhi seekh.
सुन्दर और अर्थपूर्ण रचना के लिए बधाई…! 🙂