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***अपनी जिंदगानी है …***

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चलो 

इलज़ाम के 

बहाने ही सही

सहर होने तक तो 

रुक जाओ

हमें हमारी बेवफाई का 

और अपनी

इक इक वफा का

जरा हिसाब दे जाओ 

देखें किसका  राजे दर्द 

पोशीदा रहता है पलकों में (पोशीदा=छुपा हुआ)

और किसकी पलकों से 

राज़ बेवफाई  कर जाते हैं 

किसकी धडकनों में 

मस्तूर रहती है (मस्तूर-छिपी हुई)

तस्वीर-ऐ-जानाँ 

और 

किसके अलफ़ाज़ 

लबों से  पिघल जाते हैं 

किस की सांसें 

इज़हार-ऐ-मुहब्बत से 

गरम हो जाती हैं 

और 

किसके आरिजों पे(आरिजों=गालों)

अश्क 

दर्द-ऐ-तहरीर लिख जाते है 

सच मानना 

इक दूजे से 

गिले शिकवे की ये बातें 

बेमानी हैं 

छुप के सही

मगर 

राहे मुहब्बत में 

हम दोनों ने 

बात मानी है 

गुजर न जाएँ यूँ ही 

ये रोज़े-शब् हमारे (रोजे-शब्=दिन-रात)

इक दूजे की हाँ में ही  

बस 

अपनी जिंदगानी है 

 

सुशील सरना 

 

2 Comments

  1. siddha nath singh says:

    bazaa farmaate hain.

  2. sushil sarna says:

    शुक्रिया सिंह साहिब आपकी इस मधुर प्रतिक्रिया का

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