« Godsend | “रावण-दहन” – ‘एक निरुत्तर ज्वलंत प्रश्न” » |
जख्म…
Hindi Poetry |
आज भी
जख्म भरा नही हैं
रह रह कर दर्द भी उठता है
मैनें युं ही इक बार
किसी को हंसाने की कोशिश की थी…
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Hindi Poetry |
आज भी
जख्म भरा नही हैं
रह रह कर दर्द भी उठता है
मैनें युं ही इक बार
किसी को हंसाने की कोशिश की थी…
आहा! क्या बात!