« RAINBOW COLOURS | Cradling me » |
महफ़िल से हम निकल तो गए कुछ कहे बगैर.
Uncategorized |
महफ़िल से हम निकल तो गए कुछ कहे बगैर.
चारा भी और क्या था वहां चुप रहे बगैर.
यूँ ज़र्ब रोज़ रोज़ ज़माने न दिल को दे,
वर्ना न ये मकान रहेगा ढहे बगैर.
खुद्दार हो,तो रुख न करो उस दयार का,
हासिल वहां न कुछ भी चरण को गहे बगैर.
करती हैं कुंद धार कलम की नवाजिशें,
अल्फ़ाज में न जान पडे दुख सहे बगैर.
शहरे ज़दीद के हैं जुदा ढंग क़त्ल के,
ले लेते जां बशर की वहां असलहे बगैर.
मस्ती का और सुरूर का सैलाब उसके गीत,
रहता न कोई जिसमे सरासर बहे बगैर.
करती हैं कुंद धार कलम की नवाजिशें,
अल्फ़ाज में न जान पडे दुख सहे बगैर.
बहुत खूब
खुद्दार हो,तो रुख न करो उस दयार का,
हासिल वहां न कुछ भी चरण को गहे बगैर.
करती हैं कुंद धार कलम की नवाजिशें,
अल्फ़ाज में न जान पडे दुख सहे बगैर.
बहुत ही बढ़िया |
dono sudhee pathkon ka dhanayvad