« »

महफ़िल से हम निकल तो गए कुछ कहे बगैर.

0 votes, average: 0.00 out of 50 votes, average: 0.00 out of 50 votes, average: 0.00 out of 50 votes, average: 0.00 out of 50 votes, average: 0.00 out of 5
Loading...
Uncategorized
महफ़िल से हम निकल तो गए कुछ कहे बगैर.
चारा भी और क्या था वहां चुप रहे बगैर. 
 
यूँ ज़र्ब रोज़ रोज़ ज़माने न दिल को दे,
वर्ना न ये मकान रहेगा ढहे बगैर.
 
खुद्दार हो,तो  रुख न करो उस दयार का,
हासिल वहां न कुछ भी चरण को गहे बगैर.
 
करती हैं कुंद धार कलम  की नवाजिशें,
अल्फ़ाज  में   न जान पडे  दुख  सहे  बगैर.
 
शहरे  ज़दीद  के हैं जुदा  ढंग क़त्ल के,
ले लेते जां बशर की वहां असलहे बगैर.
 
मस्ती का और सुरूर का सैलाब उसके गीत,
रहता न कोई जिसमे सरासर बहे बगैर.

3 Comments

  1. chandan says:

    करती हैं कुंद धार कलम की नवाजिशें,
    अल्फ़ाज में न जान पडे दुख सहे बगैर.
    बहुत खूब

  2. dr.o.p.billore says:

    खुद्दार हो,तो रुख न करो उस दयार का,
    हासिल वहां न कुछ भी चरण को गहे बगैर.

    करती हैं कुंद धार कलम की नवाजिशें,
    अल्फ़ाज में न जान पडे दुख सहे बगैर.
    बहुत ही बढ़िया |

  3. siddha nath singh says:

    dono sudhee pathkon ka dhanayvad

Leave a Reply