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मैं जिन्दगी को जीती हूँ ,जिन्दगी मुझे जीती है
Hindi Poetry |
मैं जिन्दगी को जीती हूँ ,जिन्दगी मुझे जीती है,
क्या हुआ,जो उलझ गया दामन कंही,
क्यों रुकूँ ? क्यों हार कर बैठ जाऊं,
मैं फिर से नए ख्वाब बुनती हूँ,
ये चाक गिरेंबा सीती है
मैं जिन्दगी को जीती हूँ ,जिन्दगी मुझे जीती है,
षडरस क्या होतें है,मैं नहीं जानती,
बस एक ही स्वाद से हूँ भिज्ञ,
मैं अपना मधु बाँट लेती हूँ,
ये मेरा कटु पीती है,
मैं जिन्दगी को जीती हूँ ,जिन्दगी मुझे जीती है
जब भी बढ़ने लगता है फासला,
हाथ अनायास ही जुड़ जातें है,
मैं स्नेह से लबालब हूँ,
ये अहं से रीती है,
मैं जिन्दगी को जीती हूँ, जिंदगी मुझे जीती है,
अरे, किस सोच में पड़ गए,
किस तलाश में हो बावरे,
हम दोनों नहीं है भिन्न-भिन्न,
एक-दूजे की प्रतीती है,
मैं जिन्दगी को जीती हूँ, जिंदगी मुझे जीती है ||
on 30-9-2012
वाह, बहुत सुन्दर रचना
और बढिया गहन अंदाज़, बहुत मन भाया
रचना के लिए अभिवादन
हम जिन्दगी को जीते हैं जिन्दगी हमें जीती है
हम जिन्दगी को हारने न दें, न जिन्दगी हमें हराती है
फिर जैसी भी हो दोनों की मिलकर जीत होती रहती है
इसे ही हम अपने जीवन की जीत कहते हैं …..
उत्तम रचना ,note करें सही शब्द अभिज्ञ है भिज्ञ नहीं .इसी लिए इसका विलोम अनभिज्ञ होता है.यानि
अन+अभिज्ञ
वाह, बहुत ही खूबसूरत रचना है| ज़िंदगी और हम एक दूसरे का अभिन्न अंग हैं, एक दूसरे को ही जीते हैं|