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जिंदा है मुश्ते खाक़ ये साँसों के ज़ोर से,
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जिंदा है मुश्ते खाक़ ये साँसों के ज़ोर से,
रोशन शमे हयात हवाओं के साथ है. मुश्ते खाक़-मुट्ठी भर मिट्टी,हयात-जीवन
दिल में हैं रंगारंग शगूफे से खिल पड़े,
फस्ले बहार तेरी निगाहों के साथ है. शगूफे-फूल फस्ले बहार-वसंत ऋतु
ताले से लग गए हैं लबो दहन पे मेरे,
पूछा जो उसने हाल अदाओं के साथ है. लबो दहन-होंठ और मुख
रस्ता है ख़त्म पर न सफ़र शेष आज भी,
संजोग कैसा जुड़ गया पांवों के साथ है.
तामीर तो बुलंद हवेली शहर में की,
दावा किया कि दिल से वो गाँवों के साथ है.
दमदार पंक्तियाँ सिंह साहब !
dhanyavad bandhuvar.
झूठ बोलने की, आदत उनकी, तो कभी, जाती नहीं,
दिल तो कहीं और, कहते, तेरे साथ हैं.
Achha Likhte Ho Singh Saheb.
dhanyavad bhai sahab.