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जिंदा है मुश्ते खाक़ ये साँसों के ज़ोर से,

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जिंदा है मुश्ते खाक़ ये साँसों के ज़ोर से,
रोशन शमे हयात हवाओं के साथ है.  मुश्ते खाक़-मुट्ठी भर मिट्टी,हयात-जीवन  
 
दिल में हैं रंगारंग शगूफे से खिल पड़े,
फस्ले बहार तेरी निगाहों के साथ है. शगूफे-फूल फस्ले बहार-वसंत ऋतु
 
ताले से लग गए हैं लबो दहन पे मेरे,
पूछा जो उसने हाल अदाओं के साथ है. लबो दहन-होंठ और मुख
 
रस्ता है ख़त्म पर न सफ़र शेष आज भी,
संजोग कैसा जुड़ गया पांवों के साथ है.
 
तामीर तो बुलंद हवेली शहर में की,
दावा किया कि दिल से वो गाँवों के साथ है. 

4 Comments

  1. Harish Chandra Lohumi says:

    दमदार पंक्तियाँ सिंह साहब !

  2. siddha nath singh says:

    dhanyavad bandhuvar.

  3. Sham Sunder Kumar says:

    झूठ बोलने की, आदत उनकी, तो कभी, जाती नहीं,
    दिल तो कहीं और, कहते, तेरे साथ हैं.

    Achha Likhte Ho Singh Saheb.

  4. siddha nath singh says:

    dhanyavad bhai sahab.

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