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ढूंढते ही रहे रहगुज़र रहगुज़र,
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ढूंढते ही रहे रहगुज़र रहगुज़र,
नक्शे पा आप के,मंजिलों के निशां
आज तक वो न शहरे तमन्ना मिला ,
बस मिले गमक़दे ,बेनिशां बस्तियां। गम्क़दे-दुःख के घर
ख़त्म होता न ये उम्र सारी गयी,
आज भी है हमें इन्तिज़ार आप का,
क़ैद जिसमे परिंदे की मानिंद मैं,
इक क़फ़स बन गया जैसे प्यार आप का।
बेशक़ीमत धरोहर बना उम्र की,
एक पल वो तेरे साथ बीता हुआ,
आँक अंतर में छवि ली तेरी मोहिनी,
देख लूँ जब करे जी, सुभीता हुआ।
मुझको भाषा न परिभाषा का है पता,
प्यार होता है क्या,मैं नहीं जानता।
मैं तुम्हारा रहूँ आखिरी सांस तक,
कुछ न इसके सिवा मन मेरा मानता।
धार पर तैरती किश्तियों की तरह,
रंच डूबा हुआ,रंच उभरा हुआ।
मैं चला हूँ जिधर तू मुझे ले गया,
तेरे सारे इशारे समझता हुआ,
दूर कितना भी हूँ पर तेरे पास हूँ,
फूल दिलकश है तू, मैं तेरी बास हूँ,
दिल से अपने अलग कर न पायेगा तू,
दिल में तेरे धड़कता मैं अहसास हूँ।
तू तो मुझ में है इतना समाया हुआ,
न खबर दूर हूँ के तेरे पास हूँ,
ग़म ख़ुशी में तो कोई फर्क लगता नहीं,
मैं खुश हूँ के थोड़ा उदास हूँ,
बस तम्मना मेरी, तू कह दे एक दिन,
यह तू ही है, मैं, जिसे रास हूँ.
आपकी हिंदी और उर्दू दोनों भाषा पे पकड़, सच में कमाल है.
एक अच्छी नज़म.
dhanyavad sham jee.