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प्रेम का बंधन टूट गया -आओ फिर बांधे धागे
Hindi Poetry |
प्रेम का बंधन टूट गया -आओ फिर बांधे धागे
मानव हम हैं इस धरती के
हम सबके भी दिल होता
संवेदनशीलता भरी पड़ी
दुखी देख किसी को दिल रोता
गुस्से के दलदल में फंस , हम अपनों को बक जाते हैं
कुछ पल की गर्माहट ये, फिर अपने ही याद आते हैं
अहम् के मारे हम सब हैं ,गलती क्यूँ स्वीकार करें
इसी सोच से पीड़ित हम सब ,झूठी मारम्म्मार करें
दया हमें अपनों की आती ,पर हम कुछ नहीं कर पाते
गलती का अहसास हमें पर पश्चाताप ना कर पाते
कुछ पल की गर्माहट ये, फिर अपने ही याद आते हैं
अहम् के मारे हम सब हैं ,गलती क्यूँ स्वीकार करें
इसी सोच से पीड़ित हम सब ,झूठी मारम्म्मार करें
दया हमें अपनों की आती ,पर हम कुछ नहीं कर पाते
गलती का अहसास हमें पर पश्चाताप ना कर पाते
अहंकार ने हम सबको ,देखो अपनों से दूर किया
दया की मूरत हम सब थे ,अहंकार ने क्रूर किया
वक्त दिया उस इश्वर ने ,जिसने हमको जन्म दिया
प्रायश्चित कर लो अब भी ,क्यूँ अपनों को ये जख्म दिया
दया की मूरत हम सब थे ,अहंकार ने क्रूर किया
वक्त दिया उस इश्वर ने ,जिसने हमको जन्म दिया
प्रायश्चित कर लो अब भी ,क्यूँ अपनों को ये जख्म दिया
पश्चाताप करें अपनी गलती का ,भूल की हम माफी मांगे
जो प्रेम का बंधन टूट गया ,आओ फिर बांधे धागे
भूला नहीं सुबह का वो,जो शाम को अपने घर लौटे
इज्जत देकर बड़ों को तुम ,कहलाओगे ना छोटे
जो प्रेम का बंधन टूट गया ,आओ फिर बांधे धागे
भूला नहीं सुबह का वो,जो शाम को अपने घर लौटे
इज्जत देकर बड़ों को तुम ,कहलाओगे ना छोटे
C K गोस्वामी जी
सुन्दर रचना मन भायी बहु
और विचार जो विदित किये
अहंकार को तज प्यार से जीना है
अनिवार्य, सुखी जीवन के लिए ….
हार्दिक बधाई