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ज़ालिम के खिलाफ़ आएगी आवाज़ कोई क्या।

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ज़ालिम के खिलाफ़  आएगी आवाज़ कोई क्या।

उट्ठेगा अब इस खाक़ से जांबाज़ कोई क्या।

 

सर फिर से उठाने है लगी घास ये कुचली,

तहरीक़े खिलाफत का है आगाज़ कोई क्या। तेहरीके खिलाफत-विरोध आन्दोलन 

 

चुप बैठा, समंदर हो ज्यों तूफ़ान से पहले,

इस मुल्क का कर पायेगा अंदाज़ कोई क्या।

 

टूटेगा कभी तो ये तेरा   कुफ्ले क़फ़स भी,

बांधेगा हमेशा मेरी परवाज़ कोई क्या।  कुफ्ल -ताला,क़फ़स-पिंजरा 

 

हैरान परेशान बला के हैं परिंदे,

बैठा है यहाँ छुप के कहीं बाज़ कोई क्या।

 

वैसे भी बचा क्या है गंवाने को हमें याँ,

कर लेगा भला हो के  भी नाराज़ कोई क्या।  याँ – यहाँ

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