« निर्झरिणी सी बहे तुम्हारी रूप सुधा भींगे तन मन , | सारा गुस्सा थूक प्रियतमे टुक मेरी मनुहार सुनो। » |
—-शिक्षक की व्यथा –
Hindi Poetry |
रेखागणित के पीरियड में एक शिक्षक द्वारा बोर्ड पर कुछ आकृतिया बना कर छात्र छात्राओ को उन आकृतियों को अपनी नोटबुक में बनाने को कहा गया …..शिक्षक क्लास में चक्कर काटते हुए एक लडकी के करीब शिक्षक ठहरा और लड़की से कहा ” तुम लाइन मारती हो की मैं मारू ”
इस लतीफे पर ये कविता बनी है ….मै भी उस क्लास में उस लडकी के पीछे वाली सीट पर बैठा हूँ …..शिक्षक की लडकी को कही बात मेरे और शिक्षक के बीच हुये संवाद की बानगी ……………………
सर आप ये क्या कह रहे है /
आप भावनाओ में बह रहे है /
उम्र का जरा तो लिहाज करो /
दिमाग का अपने ईलाज करो /
आप एक शिक्षक ,यह आपकी छात्रा है /
गुरु शिष्य का पवित्र नाता है /
अपनी मर्यादाओ में रह कर तो काम करो /
इस पावन रिश्ते को यु न बदनाम करो /
मान ,सम्मान ,पद का ध्यान रखो /
प्रतिष्ठता के अपने बडते कद का भान रखो /
आपने है उच्च शिक्षा पाई /
फिर क्यों करते हो जग हसाई /
सर बोले ,बेटा तुम बहुत बोल गये /
गाठ घुटन की आज खोल गये /
मै शिक्षक हूँ इसलिए कह गये इतना /
किसी नेता को कहते तो निश्चित था तुम्हारा पीटना /
जब बोलने की बारी आती है , तो गांधीजी के बन्दर बन जाते हो /
गुंगे ,बहरे ,अंधे हो कर ठप्पा लगते हो /
अनपढ़ ,गवार ,मुर्ख विधान सभा में पहुचते हो /
चोर डाकु संसद के लिये चुनते हो /
तब तुम्हे लज्जा क्यो नही आती /
क्यों मर्यादाये आड़े नही आती /
आबरू लुटते है भारत मां की सरेआम /
मगर वे नही होते बदनाम /
उनके लिये शर्म ,हया ,खेद नही /
मान, सम्मान ,अपमान में भेद नही /
अनाड़ियो के हाथो नेतृत्व दे देते हो /
और एक शिक्षक के दिल को कुरेदते हो /
एक लाइन ही खीचने को मैंने कहा /
इसमें कोन सा पहाड़ ढहा /
उनकी ओर तुम्हारी ऊँगली क्यों नही उठती है /
जो लाइन भारतीयों के दिलो को जाति धर्म से बाटती है /
उनके दिमागों का ईलाज क्यों नही करवाते हो /
पद प्रतिष्ठाता का लिहाज उन्हें क्यों नही सिखाते हो /
मै एक शिक्षक हूँ कोंन सी रिश्वत लेता हूँ /
दो टीवसन पढ़ाता हूँ तो किसकी किश्मत लेता हूँ /
आखिर अपना घर मेहनत कर के ही तो चलाता हूँ /
और खुद मिट कर भी देश का भविष्य बनाता हूँ /
लेकिन जो देश का भविष्य बिगाड़ने पर तुले है /
उन्ही के नीचे मखमल के गद्दे ,फूलो के झूले है /
तब क्यों नही हुई जग हंसाई /
जब जिम्मेदारो ने रिश्वत खाई /
योग्यता को आपने ही तो किया है किनारे /
मूर्खो के गुणगान के तुम लगाते हो नारे /
हर चुनाव में तुम बेवकूफ बन जाते हो /
भूल कर फिर वही ठप्पा लगाते हो /
यही तो है भारत की लाचारी ,कमजोरी ,फूटे भाग /
हंसो का हक मारकर ,मोती चुंगते काग //
4-10-1997
वाह वाह …
कल्पना और रचना बहुत ही मन भायी
मार्मिक प्रभावी अर्थपूर्ण और सामयिक
हार्दिक प्रशंसा और बधाई
चौहान जी रचना पसंद आई |
पड़ते पड़ते माणिक वर्माजी की याद आई |
आपको खूब बधाई |
Bhut bhut dhanywad Vishvnandji
धन्यवाद बिल्लोरे जी ……………ये आपका बडप्पन है