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अच्छा शासन तंत्र हुआ है,लूटपाट बस मन्त्र हुआ है।

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अच्छा शासन तंत्र हुआ है,लूटपाट बस मन्त्र हुआ है।

दाम आदमी का कौड़ी भर,पर अमोल हर यंत्र हुआ है।

 

वक्र भृकुटियाँ हुईं समय की,घडी निकट आ रही प्रलय की,

हार हकीकत में पायी है,बजा रहे दुन्दुभी विजय की।

 

गणना शरू हुई तबकों की,पाटी पुंछी गए सबकों की,

राष्ट्र भीष्म सा मर्माहत है,शय्या पर आसीन शरों  की।

 

हिस्सेदारी के दावे हैं,हिंसा के नित प्रति धावे हैं ,

मांझी खुद में मस्त पड़े हैं,डूब रहीं  तिल तिल  नावें हैं।

 

हाल देश का यह कैसा है, सबका मूल मन्त्र पैसा है,

घुसा देश के शीशा घर में,लिप्साओं का ज्यों भैंसा है।

 

सब चिंता में निज निज दल की,फिक्र किसी को ज़रा न कल की,

कर्म दूसरों के जिम्मे है,आस लगायें सब खुद फल की।

 

यह संत्रास तभी टूटेगा,जब ये स्वार्थ विकट  छूटेगा,

अगर न हमने  आँखें खोलीं,फिर परदेशी आ लूटेगा।

 

आओ यह संकल्प  उठायें,न्यायाधारित तंत्र बनाएं,

वर्ग रहे ना कोई वंचित,वह विकास का चक्र चलायें ।

One Comment

  1. Vishvnand says:

    bahut khuub

    हाल देश का यह कैसा है, सबका मूल मन्त्र पैसा है,
    घुसा देश के शीशा घर में,लिप्साओं का ज्यों भैंसा है।
    jab tak n sazaa aur maar de is bhaisen ko bhagaayen
    bataaiye apane desh kaa kaise bhalaa honaa hai

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