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” मिलना तभी जब प्रवीन पे पहुचो “….
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आसमान में रहकर जब जमीन पे पहुचो ,
फिर खराब से उबरकर बेहतरीन पे पहुचो ,
वहा भी पहुचकर चलते रहना तुझे है,
फिर मिलना मुझे जब प्रवीन पे पहुचो ….
पहले से उतरकर जब तीन पे पहुचो,
फिर स्थिर मन कर के तल्लीन पे पहुचो,
रुकना नहीं तू, अभी भी ऐ दोस्त,
फिर मिलना मुझे जब प्रवीन पे पहुचो ….
हिमालय से आकर जब चीन पे पहुचो,
अविश्वास के बाद जब यकीन पे पहुचो,
कायम रहना अपने आप पर और भी,
फिर मिलना मुझे जब प्रवीन पे पहुचो ….
जब खुशियों में जीकर ग़मगीन पे पहुचो,
फिर बन्धनों को तोड़ स्वाधीन पे पहुचो,
लय जो बनी है बने रहने देना ,
फिर मिलना मुझे जब प्रवीन पे पहुचो …. प्रवीण
hobut khubsurat vichaar,our behad prernadaai.
thanks to share,
thanks kshipra ji…aapke abhri hai hum…:)
वाह वाह बहुत खूब
रचना शानदार बहुत मन भायी।
प्रवीण तक ही पहुँचना जब आसान बात नहीं
आप शौक से कह रहे हो ” प्रवीण पे पहुँचो ” …… 🙂
dhanyavaad adarneeya….