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वो भी दिन थे, ये भी दिन हैं ….! ( गीत )
Hindi Poetry, Podcast |
यह गीत जिस भाव और धुन में उभरा था उसी में गाकर इसके नए ऑडियो के साथ प्रस्तुत करने में खुशी महसूस कर रहा हूँ ……
वो भी दिन थे, ये भी दिन हैं ….! ( गीत )
वो भी दिन थे, ये भी दिन हैं,
कभी क्या थे और अब क्या हैं ….!
कभी दिन ये गुजर जाते, न कुछ हम तुम समझ पाते,
वोही दिन तो गुजरते अब, हर इक पल ये रुलाते हैं ….!
वो भी दिन थे, ये भी दिन हैं,
कभी क्या थे और अब क्या हैं ….!
जो सपना अब, कभी सच था, वो अपने थे मैं उनका था,
ये दिन बदले, वो भी बदले, जो अपने थे पराये हैं ….!
वो भी दिन थे, ये भी दिन हैं,
कभी क्या थे और अब क्या हैं ….!
तुम्हारी याद बनकर गीत सी दिल में बसी मेरे,
सुनूँ जब गीत गम के अब, सभी मेरे से लगते हैं
वो भी दिन थे, ये भी दिन हैं,
कभी क्या थे और अब क्या हैं ….!
” विश्वनन्द “
very nice, but also very touching.
sahi kaha jaspaalji ne ,dil chhuti hui rachna.
dhanywaad sir.
good work sir.. somehow reminds me of gulzar’s “raat ye bhi guzar jayegi”(because of its first line)..
vakt ke saath gulaabon kee mahak khaan gum hotee hai
naaz tha dil ko jinkee vafa ka,ab unke vaste ye aankh rotee hai ….bahut sundr geet aur aapke sur-is manbhavan rachna ke liye haardik badhaaee SIR jee anand aa gaya