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किसी से बन न पड़े है क़रीब बिन जाये।

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सब एहतियात रखो फिर भी एक दिन जाए।

परीरुखों की भी सब आबो ताब छिन जाये। 

 

कशिश अजीब है उन दिलफरेब आँखों की,

किसी से बन न पड़े है क़रीब बिन जाये। 

 

भुलाए फ़र्ज़ तो भाई ने दुनियादारी  में,

जो वक़्त आन पड़े अब कहाँ बहिन जाये।

 

वो शख्स कैसे कोई आफताब ढूंढेगा,

जो जुगनुओं के भरोसे हो मुत्मईन जाये।

 

तुम्हारे साथ कभी फिर हसेंगे बोलेंगे,

निकल ये वक़्त किसी तौर तो कठिन जाए।  

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