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खोल जज़्बात की गिरह डालें।

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Hindi Poetry

खोल जज़्बात की गिरह डालें।

जो भी दिल में है,आज कह डालें।

 

हारना ही नसीब है अपना,

मात खाएं कि आप शह डालें।

 

जुर्म किसका है पूछते हो तुम,

तुम पे इल्जाम किस तरह डालें।

 

ये हैं गूंगे, जुबां न खोलेंगे,

आप जितना भी कर जिरह डालें।

 

लड़ते लड़ते उमर गयी सारी,

अब तो कुछ आदते सुलह डालें।

 

प्यार आबे रवां से है शायद,

झील की चूमती सतह डालें।

2 Comments

  1. ये हैं गूंगे, जुबां न खोलेंगे,

    आप जितना भी कर जिरह डालें।

    लड़ते लड़ते उमर गयी सारी,

    अब तो कुछ आदते सुलह डालें।
    uprokt panktiyaa vartmaan ko tatolati hai
    kathor yathaarh ki parato ko kholati hai

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