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***अपने स्नेह रस से भर देना ….***

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स्नेह रस से भर देना …..

कुछ भी तो नहीं बदला
सब कुछ वैसा ही है
जैसा तुम छोड़ गए थे
हाँ, सच कहती हूँ
देखो
वही मेघ हैं
वही अम्बर है
वही हरित धरा है
बस
उस मूक शिला के अवगुण्ठन में
कुछ मधु-क्षण उदास हैं
शायद एक अंतराल के बाद
वो प्रणय पल
शिला में खो जायेंगे
तुम्हें न पाकर
अधरों पर
प्रेमाभिव्यक्ति के स्वर भी
अवकुंचित होकर
शिला हो जायेंगे
लेकिन
पाषाण हृदय पे
कहाँ इन बातों का असर होता है
घाव कहीं भी हो लेकिन
उसे नेत्र जल ही धोता है
उच्च पर्वत शिखरों के मध्य
दूर अन्नंत में विलुप्त होती राह
हमारी स्मृतियों की धरोहर हो गयी है
मेरे काजल युक्त अश्रु मेघों से तुम्हें
मेरी हृदय पीड़ा का आभास हो जाएगा
व्योम के इन्द्रधनुष का हर रंग
मधु क्षणों को दोहराएगा
मेरे याचक नयनों की
मौन अभिलाषा
तुम्हारी नयन देहरी तक
ये पवन ले आयेगी
देखो नयनों का मौन निमन्त्रण
स्वीकार कर लेना
अपनी प्रेयसी के
एकाकी पलों को
अपने स्नेह रस से भर देना ,अपने स्नेह रस से भर देना …..

सुशील सरना /9 -०4 -1 3

4 Comments

  1. siddhanathsingh says:

    Hindi aapki zzordaar hai Sarna Sahab. Bahut khoob.

  2. Vishvnand says:

    Pyaar me pali bhaavanaaon kii ati sundar abhivyakti
    prashansneey rachanaa bahut man bhaayii
    Hardik Badhaaii

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