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उम्र गुजरी लगे तुम अभी कल मिले।
Hindi Poetry |
मशविरा देने वाले मुसलसल मिले।
मसअलों के बमुश्किल मगर हल मिले।
दर्द सहते हुई इंतिहा सब्र की ,
या इलाही कभी तो ज़रा क़ल मिले। qal-resspite
क्या गज़ब का शहर है तुम्हारा शहर,
आरजूओं के घर घर में मक़तल मिले।
भूलने को न तैयार दिल क्या करें,
उम्र गुजरी लगे तुम अभी कल मिले।
चल दिए सब बढ़ा और तिश्नालबी ,
जब भी सहरा नवर्दों को बादल मिले। sahranavardon-wanderers of deserts
लम्हा लम्हा बना दास्ताँ दर्द की,
ज़िंदगी में सुकूं के न दो पल मिले .