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एकाधिक अर्थ लिए कोई है श्लेष सी,

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Hindi Poetry

अलग अलग होती है कविता हर देह की .

कोई हो छंदबद्ध, हो कोई मुक्त छन्द ।

कोई सुदीर्घ महाकाव्य के सरीखी है,

कोई क्षणिका जैसी खुलते ही हो बन्द।

 

कोई श्रृंगार भरे गीतों सी बहती है,

कोई हुंकार धरे वीर काव्य रहती है.

कोई सुगूढ़ है रहस्यवाद रंजित सी,

कोई नितांत सरल बाल गीत कहती है।

 

एकाधिक अर्थ लिए कोई है श्लेष सी,

होती समाप्त किन्तु रहती अशेष सी .

कोई अपन्हुति की छवि है साकार सी,

कोई है क्लिष्ट किसी तापस के केश सी .

 

कोई मन पर छाये रसभीने बादल सी,

कोई गूंजे कानों में मीठे मादल सी .

कोई ग़ज़ल जैसी मादकता डूबी है,

कोई महकार लिए आती है संदल सी .

 

मोहक कलेवर में कोई सबको मोहे.

कोई है जैसे हो नीति वचन के दोहे.

रंग रंग देह गीत के रचे विरंचि ने,

रुचियाँ हैं भिन्न भिन्न जिसको जैसा सोहे.

2 Comments

  1. ashwini kumar goswami says:

    What a good 5-star composition !

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