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भोर से पहले अंधेरा
Hindi Poetry |
गमों के पर्दों के पार खुशियों की शमा है जल रही
आँसुओं में डूबी रात में हँसी की फुलझड़ियाँ हैं फूट रहीं
लुका छुपी में उलझे हुए हैं खुशी और ग़म
नाप-तोल में लगें तो न ये ज़्यादा न वो कम|
अंधेरों से जूझती सूरज की हर उगती किरण
विजयी हो छनकती हुई करती भोर का आह्वन
दुख के बोझ से दबी जब ईश्वर की सृष्टि संपूर्ण
अमृत की बौछार करता तब समुद्र मंथन भरपूर|
जैसे भट्टी में झुलसने के बाद घडा पक कर होता तैयार
जैसे सोने का हर टुकड़ा सिक कर ही बनता श्रिन्गार
हर कण अंधेरे का है छुपाए धूप की बहार
यह तो नियम है, दिन-रात आयें बार-बार|
ज़िंदगी कैसे ठिठक कर एक जगह सकती है रुक ?
ऊँचे नीचे रास्ते ही दिखाते अंजान मंज़िल का रुख़
डर गये, तो कदापि न पकड़ पाएँगे कोई छोर ,
कर आँखें बंद, मुस्कुराहट लबों पर, सपनों की पकड़ डोर,
फिर है मज़ाल अंधेरे की कि रोक ले होती हुई भोर!!!!
Great positive thought of sunshine of hope and confidence riding over dark night negative thought of despair and depression.
Very well expressed through beautiful evocative imaginative word pictures.
Kusum
Thank you so much Kusum ji for such encouraging words.
I just happened to open a very old diary of mine and guess what? I had a poem of yours which is about 25 years old. I had copied it from a magazine as I had liked it a lot. The poem goes : ” Oh to be in the alcove of love, shut off from the stony world…….” I read it and loved it again!!