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यहाँ पर फिक्र किसे हैं
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दोस्तों, इस कविता का लिखना तभी सार्थक होगा जब आप इस पर सोच कर, अपनी सोच के कदम इस तरफ बढ़ाएंगे| आशा करता हूँ, कि हम अपने देश कि समकालीन समस्यों पर कुछ सोचे, जो हम से बन पड़ता हैं करे | देश के लिए समर्पित, मेरी तरफ से एक छोटा सा प्रयास|
नंगे नाचे गिद्ध, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
स्वार्थ हो बस सिद्ध, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
लालच का है आज यहाँ पर बोलबाला,
गद्दारी का तो हर एक ने फैशन पाला,
सबको अपनी चाह, देश की चाह किसे है,
जाये देश गढ्ढे में यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
होता कभी था देश गुरु आदर्शों का,
ज्ञान संस्कृति की तूती बोला करती थी,
आधुनिकता के नाम मरे संस्कृति यहाँ पर,
मरे चाहे आदर्श, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
लड़ते है बेमतलब घरेलु झगड़ों में,
ताकत लोग दिखाए घरेलु लफड़ों में,
बाँट दिया टुकड़ों में हर एक मानव को,
मरे पडोसी आज यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
मरते है यहाँ लोग गरीबी से तंग आकर,
बिकते है यहाँ तन, पेट से आजिज आकर,
भ्रष्ट यहाँ पर हरदम भरते रहे तिजोरी,
सड़ता रहे अनाज, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
कल तक थे जो भाई आज यहाँ लड़ते है,
खुद को हिन्दू मुस्लिम आज वो कहते है,
भगवान, खुदा के नाम पे क़त्ल वो करते है,
प्रेम ही है भगवान, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
दंगे फसादों का क्रम यहाँ ना टूटे,
आज टूटी जो मस्जिद, तो कल मंदिर टूटे,
भाईचारा, प्रेम, दया , सर सबके फूटे,
बेबस खड़ा भगवान, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
भुखमरी, बेकारी यहाँ पर घर करती हैं,
दहेज़ खातिर आज यहाँ कन्या जलती हैं,
लालच खातिर आज यहाँ सब कुछ सही है,
जले चाहे जिन्दा लक्ष्मी, फिक्र किसे हैं|
विश्व गुरु के घर निरक्षरता पसरी है,
वेदों की वाणी आज पाताल बसती है,
राम राज्य का सपना अब सपना ही है,
जयचंद सा हर शख्स, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
राम यहाँ संग्रहालय में सजाये जाते हैं,
रावण तो घर घर में ही पाए जाते है,
सीता तो भूमिगत हो ही चुकी है,
सूर्पनखा हर और, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
रोता है ये दिल, आँख से आंसू निकले,
देख दुर्दशा देश की, दिल कैसे न पिघले,
“भरत” उठा आवाज, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
ये मत कहना तू आज, यहाँ पर फिक्र किसे हैं|
तू है भारत का लाल,आज बस फ़िक्र तुझे है,
ऊँचा हो भारत का भाल, बस फ़िक्र मुझे है|
fikar mujhe bhi h. sundar rachana ke liy dhanywad.