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वो बन्दा हो न हो थोथा चना है.
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हकीकत हक बजानिब अब कहाँ है
ज़मीरों में बला की पस्तियाँ हैं.
न चेहरों का दिखाता अक्स सच्चा,
हुआ टेढ़ा यहाँ हर आईना है.
ह्रदय यद्यपि हलाहल से लबालब,
लबों पर शोभती शुभकामना है.
उंगलियाँ और ही करतीं इशारे,
हमें तो बस मुताबिक़ नाचना है.
घनी आवाज़ कब से कर रहा है,
वो बन्दा हो न हो थोथा चना है.
न काटे से कटेगी रात बैरन,
बदल के करवटें बस काटना है.
वो बनना चाहता तो है विधाता,
जो करता दंडवत हो याचना है.
यही स्तर हो गया है राजनय का,
अनय की अनवरत अभ्यर्थना है