« जिनमे गए ज़माने गुज़रे उन गलियों में फिर हम आये | Putting up with faulty women with faulty actions » |
फुर्सत के कुछ पल
Anthology 2013 Entries, Hindi Poetry |
आज कुछ पल खुद के साथ जो बिताये तो लगा,
जैसे अब तक खुदसे अनजान थी मैं,
बढ तो रहे थे कदम पर नहीं जानती थी
किसकी पहचान थी मैं,
अब जो कुछ पल रुकी तो अहसास हुआ,
कहाँ जाना था कहाँ से आई थी मैं,
पीछे मुड़कर उन रास्तो को देखा तो
कुछ ख़ुशी का अहसास हुआ
शायद इसलिए कि उन रास्तो पे
कुछ यादें थी कुछ बीती बातें थी
या शायद जो कुछ पाया था
उस पर नाज कर रही थी मैं,
एक पल को लगा बहुत आगे बढ चुकी
अब कुछ आराम करूँ जो छुट चुकी है
जिन्दगी उसे नया आयाम दूँ,
इन पलो में जो सिमट गई है जीवन की खुशियाँ
उन्हें ही मैं अपनी मंजिल बना दूँ,
छोड़ दूँ ये गर्दिशो के रास्ते,
इन यादों के इन बीती बातों के
सहारे ही अपना जीवन बिता दूँ।
फिर लगा अरे! ये किस सोच में डूब गई मैं,
ये ही तो इन्सान की फितरत है
जो पा लिया उसका शुक्र नहीं
जो नामुमकिन है उसी की चाहत है,
फिर समझाया भी मन को,
ये गुजरे पल गुजरे रहें तभी खुशियाँ देंगे
इन्हें पा लिया तो फिर नई चाहत उठ जायेगी,
और फिर एक बार मैं चलने को तैयार हो उठी
मन में उन यादों को समेट कर
एक ऐसे रस्ते पे जो न जाने कब ख़त्म हो।
वाह वाह अतिसुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत मन भायी …..
अपने जीवन की राह के हर पड़ाव में आराम से यूं आत्मचिंतन करते हुए प्रबुद्ध दिशा में आगे बढ़ते और चलते रहना ही तो अपने जीवन का सच्चा सुख है और शायद धेय भी ….
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई
इतने प्रोत्साहन के लिए अनेको धन्यवाद् सर,
आप जैसे महान कवियों का प्रोत्साहन ही मेरे लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।
बहुत बहुत धन्यवाद्।
एक अनुरोध है यदि कोई कमी या सुधार की आवश्यकता हो तो कृपया जरुर लिखें।
bahut sundr bhavabhivyakti-pryaas sraahneey hai-anzoo kee manzil door naheen-haardik badhaaee
अनेको धन्यवाद सर, आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों से आत्मविभोर हुई।
कमी या सुधार की आवश्यकता हो तो कृपया जरुर लिखें।
oho really grt …….so innocent,…… luv it