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***पीने का करीना ***
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क्योँ लब पे तुम्हारे जुम्बिश है पेशानी पे पसीना आया है
…….अब हया की चिलमन रहने दो सावन का महीना आया है
………….यूँ शिकवे गिले करते करते ये मौसम रूठ न जायें कहीं
…………………..आगोश में अब साकी की हमें ….पीने का करीना आया है
सुशील सरना /10.05.13
बहुत अच्छी पंक्तियाँ सर।
Thanks for ur sweet comment Leena jee