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रूप सजन का इन नज़रों में, मैं नज़रों में साजन की।
Hindi Poetry |
अधरों पर आकुल अधरों ने प्रणय पत्रिका प्रणयन की।
अग्नि शिखा सी शिरा शिरा में कौंधी आतुरता मन की।
जीवन भर की हुई कमाई यह अमूल्य थाती क्षण की।
सदा रहेगी साथ भले ही ढले यवनिका यौवन की।
तप्त रुधिर,अलसायीं आँखें,अंग अंग मनुहार करे,
प्रेम सुधा रस बरसाओ प्रिय,बुझे पिपासा इस तन की।
अलकों के बादल शशि मुख पर करते हैं अठखेली से,
साँसों में उत्तप्त सुगंधें व्याप रहीं हैं चन्दन की।
नीवी बंध खुले क्षितिजों के विस्मित चाँद सितारे हैं ,
साँसें थामे सुनें हवा की हांफ रही ध्वनि सन सन की.
होश किसे दीनो दुनिया का प्रणय समुद्र समाहित हम,
रूप सजन का इन नज़रों में, मैं नज़रों में साजन की।
Vaah vaah vaah atisundar aur delighting
har chand de rahaa aanand…
Hardik dhanyvaad…
Sach hai
जीवन भर की हुई कमाई kuch अमूल्य थाती क्षण की।
सदा jo rahatii yaad भले ही ढले यवनिका यौवन की।
dhanyavad vishv ji
waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah laaaaaaaaaaaaajwaaaaaaaaaab kya kahne maza aa gya-bhaavon kee gahnta aur prvah gazab-haardik badhaaee Singh saahib
bahut bahut dhanyavad Sarna ji.