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रूप सजन का इन नज़रों में, मैं नज़रों में साजन की।

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Hindi Poetry

 

अधरों पर आकुल अधरों ने प्रणय पत्रिका प्रणयन की।

अग्नि शिखा सी शिरा शिरा में कौंधी आतुरता मन  की।

 

जीवन भर की हुई कमाई यह अमूल्य थाती क्षण  की।

सदा रहेगी साथ भले ही ढले यवनिका यौवन  की।

 

तप्त रुधिर,अलसायीं आँखें,अंग अंग मनुहार करे,

प्रेम सुधा रस बरसाओ प्रिय,बुझे पिपासा इस तन  की।

 

अलकों के बादल शशि मुख पर करते हैं अठखेली से,

साँसों में उत्तप्त सुगंधें व्याप रहीं हैं चन्दन  की।

 

नीवी बंध  खुले क्षितिजों के विस्मित चाँद सितारे हैं ,

साँसें थामे सुनें हवा की हांफ रही ध्वनि सन सन  की.

 

 होश किसे दीनो दुनिया का प्रणय समुद्र समाहित हम,

रूप सजन का इन नज़रों में,  मैं नज़रों में  साजन की।

4 Comments

  1. Vishvnand says:

    Vaah vaah vaah atisundar aur delighting
    har chand de rahaa aanand…
    Hardik dhanyvaad…

    Sach hai
    जीवन भर की हुई कमाई kuch अमूल्य थाती क्षण की।
    सदा jo rahatii yaad भले ही ढले यवनिका यौवन की।

  2. sushil sarna says:

    waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah laaaaaaaaaaaaajwaaaaaaaaaab kya kahne maza aa gya-bhaavon kee gahnta aur prvah gazab-haardik badhaaee Singh saahib

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