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***………..श्रृंगार से रिझाऊंगी …………***
Anthology 2013 Entries |
………..श्रृंगार से रिझाऊंगी …………
रुक !
ऐ हंसी !
अभी इन अधरों के ……
द्वार न खटखटा //
अभी इन अधरों पे …..
सिसकती धडकनों के …..
नग्मे हैं //
आरिजों पे …..
जुदाई का सावन है //
किसी स्पर्श की बाट जोहते ….
नयनों के गीले आँगन हैं //
अभी इन गर्म साँसों में …..
किसी की यादों की जंजीरें हैं //
सच कहती हूँ …
ऐ हंसी !
तुम मेरे अधरों से ….
विरह की सलवटों को ….
न मिटा पाओगी //
मेरे शूल से एकांत पलों की ….
पीड़ा न समझ पाओगी //
और तो और …
मेरे अंगार पलों से तुम …
खुद भी झुलस जाओगी //
क्यूं अपने अस्तित्व को ….
मेरे विरह पलों के श्रृंगार में ….
व्यर्थ ही गंवाती हो //
हाँ !
लेकिन देखो ….
जब मेघ कंठ से …..
बरखा की नन्हीं बूंदें …..
मिलन की गीत गाती हों …..
जब किसी ….
मृदुल चांदनी रात में …..
शांत झील की सतह पर …..
चांदनी ….
चाँद संग बतियाती हो //
तब …
तुम मेरे अधर द्वार …..
पर बेझिझक चली आना //
मेरे अधरों पर ….
अपना श्रृंगार कर जाना //
तब ….
मैं तुम्हें अपने अंग लगाऊँगी //
अपने करों से ….
मेरे चहरे से घूँघट हटाते …..
अपने हृदेश्वर को ….
तुम्हारे श्रृंगार से रिझाऊंगी //
तुम्हारे श्रृंगार से रिझाऊंगी ……
सुशील सरना /21/07/2013
madhurim aur manohar.
aapkee snehaasheesh se rachna dhny huee-haardik aabhaar Singh saahib