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***शिलाओं के पीछे ….***
Hindi Poetry |
शिलाओं के पीछे ….
अपनी कोख में….
जाने कितने….
संहार-सृजन के….
काल समेटे //
पाषाणों में ….
वज्र अक्षरों से …..
शुष्क धरा पर ….
मौनता के …
अट्टहास समेटे //
भानु के आगमन …..
और गमन की ….
गति में सृष्टि के ….
अबूझे भाव समेटे //
नभ के व्योम से …..
मेघों में …..
अपने जीवन के……
अंश को ….
धरा द्वारा ….
अपने अंक में …..
न समेट पाने का …..
दर्द समेटे //
बंजर जमीन पर ….
अपनी साँसों का …..
प्रतिनिधित्व करती …..
ठूंठो के सिरों पर …..
उगी चंद पत्तियों के उद्भव में …..
अंत की किरण का ….
अक्स समेटे //
वक्त अपने कंधों पर …..
कुछ ऐसे ही ……
पल पल गिरते संभलते ……
जीवन के रंगों की ……
गठरी बांधे …..
बस मूक सा …..
चलता ही रहता है //
पथरीली ज़मीनों पर ….
पगडण्डीयाँ कहाँ बना करती हैं …..
जाने कितने पथिकों के ….
पद चिन्ह अपनी अपनी …..
व्यथा के साथ ……
इन कंकडों के नीचे दफ़्न हैं //
इन्हें छू कर देखो …..
इनमें जीवन की कडवी सच्चाईयां …..
बोलती नज़र आयंगी //
शिलाओं में ….
जीवन नज़र आएगा …..
नीरवता में …..
कोलाहल नज़र आएगा //
जरा गौर से ….
नभ को छूती इन …..
मौन शिलाओं को देखो //
कहीं इन शिलाओं के पीछे ….
वो जीवन,
वो शान्ति ,
वो तृप्ति तो नहीं
जिसकी हमें तलाश है
जिसके लिए जीव की भटकन है
जिस अमर लौ से
मिलन के लिए
बेचैन ये अंतर्मन है
शायद हाँ ….शायद हाँ ….शायद हाँ …….
सुशील सरना
anany see sundar rachanaa
apane sanvedan aur ahsaas ko shabdon me sanvaarne samajhaane kaa atisundar prayaas
Bahut man bhaayii rachanaa …aapko hardik abhinandan khaas ….
aapkee ye pratikriya paakar meree rachna jeevant ho gayee SIR aapka tahe dil se shukriya SIR jee