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***सांझ ढले वो हौले से आवे – (मुकरिया )…….***
Hindi Poetry |
प्रिय सुधि पाठको आज मैं मंच पर एक नई विधा मुकरिया में रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा है आपको पसंद आयेगी :
1. सांझ ढले वो हौले से आवे
….होत प्रभात ओझल हो जावे
….वो अन्धकार में लगता प्यारा
….ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा
2.खुली आँख से नज़र न आवे
….बिना आहट के वो अंग लग जाए
….का से कहूं मैं दुःख ये अपना
….ऐ सखि साजन ? ना सखि सपना
3.तारे गिन गिन बीती रैना
…हर आहट पे चौंके नैना
…आवत ही फिर धड़के छाती
…ऐ सखि साजन ? ना सखि पाति
4.नैन बसे तो हिय मन भावे
…दृग दर्पण को देख शरमावे
…हर सुहागन का है ये नूर
…ऐ सखि साजन ? ना सखि सिन्दूर
5.संग अंग के लग जाती
…विचरण की जब बात है आती
…न मानूं तो हो मूड खराब
…ऐ सखि साजन ? ना सखि जुराब
सुशील सरना
bahut khoob, khusaro ameer ke pagchinh par sahi chal rahe hain,
is dilee daad ka haardik shukriya Singh saahib
oho…!! waah..! bohot hatke likha hai aapne…!
bohot khoob…! 🙂
rachna par aapkee is madhur prashansa ka haardik aabhaar Komal Nirala jee