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तेरी दुनियाँ में क्या मेरे सिवा कोई नहीं…
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क्या क़ाबिल-ए-क़ुबूल मेरी दुआ कोई नहीं
या मैं समझूँ के यहाँ मेरा ख़ुदा कोई नहीं
उठा सके जो दिल पर बोझ ग़मों का
तेरी दुनियाँ में क्या मेरे सिवा कोई नहीं
दिल नहीं कई बार ज़ख्म सा मिला है
सुनते हैं की नासूर की दवा कोई नहीं
एक मौसम तेरी याद का ठहरा हुआ है
बदलती मेरी आब- ओ – हवा कोई नहीं
कुछ क़तरे थे और कुछ धुंआ धुंआ सा था
और दिल में तेरी सूरत के सिवा कोई नहीं
सारी खताएं मेरी तोहमतें मुझपर ही सही
बाखुदा मुझे तुझ से गिला कोई नहीं
ये किस मुकाम पर आ गई है ज़िन्दगी
मंजिलें ही मंजिलें है और रास्ता कोई नहीं
यूं ही बेवजह जुदा हुए थे शकील उनसे
और देखो दोनों में बेवफा कोई नहीं
sheron ke bhaav achchhe par vazan ke lihaaz se thode hile hue!