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कोई तरसा बताशों को, कोई छांट मिठाई खाता है
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क्या हुआ जो मजबूर कर दिया हमे मुंह के छालों ने
मुंह मीठा कर दिया मीठी शुभकामना भेजने वालों ने
क्या हुआ जो खरीद न सका मैं दीवाली के दिये
घर मेरा रोशन कर दिया पडोसी दियों के उजालों ने
क्या हुआ जो रंग रोगन न कर पाया मै दीवारों मे
धूल सारी हटा दी घर की बरस के बादल कालों न
झूम रहे थे खुशियों मे सब फोड़ फ़टाखे अपने घर
सरहद पर झेली आतिशबाजी देश के वीर लालों ने
बाजारों मे बहता पैसा जब इतनी मंहगाई के बाद
हक कितनों का खा गये भ्रष्टाचार और घोटालों ने
कोई तरसा बताशों को कोई छांट मिठाई खाता है
उपहारों से घर भर दिया अफसरों का दलालों ने
कैसी दीवाली, कैसा उत्सव आधा देश जब भूखा है
मुझको सोने न दिये रात भर मन के इन सवालों ने
सुरेश राय ‘सुरS’
(चित्र गूगल से साभार )
हक कितनों का खा गये भ्रष्टाचार और घोटालों ने do you think it is a grammatically correct expression Rai Sahab? When we write I think we must take care of grammar lest it confuses the already confused and grammatically illiterate new generation. A well written piece, . We may write- haq kitno ke leel liye bhrashtachar aur ghotalon ne.
bhaav poorn kavitaa. badhaaii!