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***पेशानी पे मुहब्बत की यारो ……….***
Hindi Poetry |
पेशानी पे मुहब्बत की यारो ……….
लगता है शायद
उसके घर की कोई खिड़की
खुली रह गयी
आज बादे सबा
अपने साथ
एक नमी का
अहसास लेकर आयी है
इसमें शब् का मिलन और
सहर की जुदाई है
इक तड़प है
इक तन्हाई है
ऐ खुदा
तूने मुहब्बत भी
क्या शै बनाई है
मिलते हैं तो
जहां की खबर नहीं रहती
और होते हैं ज़ुदा
तो खुद की खबर नहीं रहती
छुपाते हैं सबसे
पर कुछ छुप नहीं पाता
लाख कोशिशों के बावज़ूद
आँख में एक कतरा
रुक नहीं पाता
हिज्र की रातों में
सितारों से बतियाते हैं
खामोश लम्हों से
बारहा उनके अक्स चुराते हैं
अक्स
जिनमें उसके आरिज़ों पर
हया की अरुणाई है
अक्स
जिसमें उसके लबों पर
प्यास थरथराई है
अक्स
जिसमें वो बे-हिज़ाब आई है
आज उसकी याद ने
मेरे दिल के निहाँख़ाने
ली एक अंगड़ाई है
पेशानी पे मुहब्बत की यारो
इक लफ्ज़ लिखा तन्हाई है
न उसको ये रास आई है
न मुझको ये रास आई है
सुशील सरना
bahut khoob
Thanks a lot Sir for ur sweet comment.