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बुलंदी का ग़ुरूर इतना न कर तू

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Hindi Poetry

बुलंदी का ग़ुरूर इतना न कर तू
तने से सिर्फ लिपटी बेल भर तू

कटी कूचे में तेरे उम्र मेरी
कभी मेरी गली से भी गुज़र तू

मुक़ाबिल वक़्त के हस्ती तेरी क्या,
खिंची बस रेत पर है एक सतर तू

ख़ुलूस और दोस्ती क्या ढूँढता है,
अरे नादान अब आया शहर तू

करेगा इस तरह ज़ाया अगर दिन
रहेगा बेसुकूं फिर रात भर तू

करेगा किस तरह इज़हारे उल्फत
न थामे बैठ यूँ ज़ख्मे जिगर तू

जो लुत्फ़ अन्दोज़ होना चाहता है
न फिक्रे ज़िन्दगी में रोज़ मर तू

जला ले इल्म की शम्मे फ़रोज़ाँ
न यूँ रह ज़िन्दगी भर बेखबर तू

अदाकारी उसूले अव्वलीं है
शहर में, सीख भी ले बेहुनर तू

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