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बने भेड़ हैं भेड़िये,होशियार हे देश।
Hindi Poetry |
बाज़ी थी सबने बदी ज़ारी थी घुड़दौड़
पंजीरी थी बांटती कुर्सी ताबड़तोड़।
रीति नीति सिद्धांत सच सब रण में थे गौण
ग़ुम ग़रीब की थाल से रोटी कांदा लौन।
“चंदा” मामा कर रहे थे निर्धारित नीति
अर्थ शास्त्री बोलते वाजिब मुद्रास्फीति।
सूख सुखा सावन गया भादों कर भयभीत
आशा करना तक हुआ था ज्यों आशातीत।
अर्द्ध शती से चल रहा मिलीभगत का खेल
समझे सभी अवाम को थे कोल्हू का बैल।
सुन सुन कर सब मस्त थे सत्ता का संगीत
लगी फ़िक्र जनता जगी गए सुखी दिन बीत।
पुनर्प्रतिष्ठित हो रहे रीति नीति सिद्धांत
राजनीति का व्याकरण बदला आद्योपांत।
रहे चतुर बहुरूपिये बदल सब अपने भेष
बने भेड़ हैं भेड़िये,होशियार हे देश।
Vaah, bahut khuub
Sundar arthpoorn rachanaa aur badhiyaa sandesh …!
thanks.