« मौसमों ने खूब मारा है इन्हें. | बने भेड़ हैं भेड़िये,होशियार हे देश। » |
शुरू में हममें नादानी बहुत थी।
Hindi Poetry |
सफ़र में गो परेशानी बहुत थी
न चलने पर पशेमानी बहुत थी।
वहाँ कोई न टिकना चाहता था,
वहाँ हर वक़्त निगरानी बहुत थी।
न पहचाने गए पहले पहल वो,
शुरू में हममें नादानी बहुत थी।
मुहाफ़िज़ और किसको खोजते हम
ख़ुदा की ही निगहबानी बहुत थी ।
बला ए जान थी लेकिन करें क्या,
वो रू ए खूब नूरानी बहुत थी।
गली ना दाल ऐयारों की अबके,
अवाम अब हो गयी स्यानी बहुत थी।
सुलूक़ ए यार पर चुप थे अगरचे ,
हमें दर अस्ल हैरानी बहुत थी।