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कुछ हो चला है।
Hindi Poetry |
एक किताब के बिखरे पन्नो सा मन हो चला है
काल-आज-काल के क्रमांक की लय को खो चला है
कुछ हो चला है
कुछ शीर्षक कुछ किस्से,
पन्नो के कुछ हिस्से,
समय एक लेहेर मैं सब धो चला है
कुछ हो चला है
आधी-अधूरी और धुँधली,
एक छवी उभर के आती है
निराश मन , इस होंसले को भिगो चला है
कुछ हो चला है
Achchii abhvyakti, par kaii galt chape shabdon ko sudhaarne kii jaroorat hai jo rachanaa kaa star bigaad rahii hain. 🙁