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गुलाब
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ये क्या हुआ गुलाब क्यों लाल हो गये
होंठों से क्या लगे कि महताब हो गये
हम को खबर नही थी, गुलाब में है इतनी बू
जिस को दिए गुलाब वो गुलाब हो गये।
कितने गुलाब अधर से गुलाब हो गये
नयनों से जो लगे वो पांख पांख हो गये
पर जब लगे दिल से तो खुद को भूल कर गुलाब
खुश्बू हुए और कुछ प्यार हो गये। .
दोनों में पलटी रही एक अनोखी आग
उस के भीतर आग थी इस के बाहर आग
आग आग से जब मिली लपटें उठी प्रचंड
तप वहाँ पर जो उठा वह गुलाब की गंध।
मेरा तेरा वास्ता धरती और असमान
मैं धरती का फूल हूँ तू महलों की शान
इतराता इस बात पर कहे अरे गुलाब
तू तो रोता सेज पर मैं जंगल की शान।
शायद फिर फिर सोचता होगा वह गुलाब
काँटों के संग ही यहाँ जीना तुझे गुलाब
फिर इन से कैसी घृणा और उन का क्या प्यार
क्या तेरा यह भग्य है या काँटों का भाग्य।
Vaah,
Bahut sundar aur manbhaavan
Hearty commends
aadrniy vishnand ji aap ka sadr aabhar vykt krta hoon kripya swikar kren