भूखे बच्चे दिन भर जोहें कब अम्मा मिल से निकले
मायूसी की चादर ओढ़े सारे महफ़िल से निकले
होता असर कहाँ है यूँ भी बात न जो दिल से निकले
कहने को तो आज़ादी है अपना दर्द सुनाने की
तेरे खौफ के आगे जालिम चूं भी मुश्किल से निकले
अर्थ हटा आडम्बर शब्दों का ऐसे आखिर निकला
बदली से निकले ज्यों चंदा,लैला महमिल से निकले
सभा भरी थी देखो कैसे कैसे हिम्मतवालों से
बिल्ली के होते ही ओझल सब चूहे बिल से निकले
यही सचाई स्वर्ण नगर की अच्छा हो तुम भी जानो
भूखे बच्चे दिन भर जोहें कब अम्मा मिल से निकले
कुछ तो ऐसे रहे बटोही बीच राह से लौट चले
कुछ यूँ डूबे सफ़रे जुनूं में आगे मंज़िल से निकले
शायद इंतिख़ाब जल्दी ही होने वाले हैं उस ओर
हुआ अजूबा सभी सलामत कूच ए क़ातिल से निकले
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