« ये निगाहें तेरी जादुई जानेमन। | ” जल-थल “ » |
माँ कहती है ….
Hindi Poetry |
सूरज कितना उंचा हो,
किरणे पड़ती है धरती पर,
सूरज को फर्क नही पड़ता
कोई गिरे फूल या अर्थी पर
तू इतने उंचे विचार रखना
अपने कद से उपर संस्कार रखना
झुकना भी पड़े जो तुझे कहीं पर
उंचा आचरण – व्यवहार रखना
पथ मे कितने चौराहे हो
मंजिल का एक ठिकाना है
कोई दाएं चले, कोई बाएं चले
कोन जाने किसे क्या पाना है
तू उस राह पे कदम बढ़ाना
जहां सत्य और शिव तेरे साथ चलें
मंजिल तो मिले ना मिले चाहे
तेरे सुकर्म तुझपे फले
हो डॉक्टर या इंजिनियर हो
उसकी नज़र में सब एक समान
उंच – नीच को वो ना जाने
सब नर – नारी उसकी संतान
तू ऐसी विध्या ग्रहण करना
जो इंसानीयत सीखाती हो
हिन्दू डॉक्टर , सिक्ख अफसर
से बेहतर ,तुझे इंसान बनती हो
कलयुग का सिक्का बोलता है
सोने-हीरे का मोल है उंचा
बंगले – गाड़ी बनाने में
जूट रहा है जग समूचा
तू भी जीवन का लुत्फ उठना
रुपियों संग इज़्ज़त – दुआ कामना
लक्ष्मी की सीरत चंचल
कभी-कभी दान- पुण्य करके घर आना
पृथ्वी चाहे कितनी विशाल हो
अपनी धुरी पर घूमती है
आत्मा हज़ारों लोगों में
कुछ अपनो को ढूँढती है
तू रिश्तों का मान रखना
दिल में पुराना सामान रखना
नहीं कहती , लड़ सरहद पे जाकर
बस, विदेश में रेहकर भी
मेरे बेटे , तू भारत माँ का सम्मान रखना
sundar kalpanaa arthpoorn abhivyakti
Par sudhaaranii hogii rachanaa me Hindi bhaashaa kii bahut saarii galtiyon kii upasthiti …..!