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हम तो ये जाने हम कई मौत हैं मरे शकील…..
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वो बेवफा है की बावफ़ा वो जाने
उसका अपना इमां-ओ-खुदा वो जाने
हम तो ये जाने की आँखें उसकी हैं
जिसने पी हो कभी बेइंतेहा वो जाने
हम तो हवाओं पर भी लिखते हैं ग़ज़ल
कैसी है उनके शहर की आब-ओ-हवा वो जाने
हम तो करते हैं सलाम जब भी वो मिले
सर झुका कर गुज़रना हो उनकी अदा वो जाने
हम तो ये जाने हम कई मौत हैं मरे शकील
और किस जुर्म कि दी है मुझे सज़ा वो जाने
jahan “kee” hona chahiye vahan “ki” aur jahan “ki” hona tha vahan “kee” Kyon bhai Shakeel!
Vaah, sundar andaaz kii aapkii ye rachanaa hai Shakeel
Badhaaii de rahaa, padh aur khush hokar ye dil ….!