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जब जरुरत हो मुझे – 2
Hindi Poetry |
मैं ही बिखरे वजूद कि राहत हूँ ,
दिल कि दिल से ही बगावत हूँ ,
जिसे ठुकरा दे सारी दुनिया,
उसे मैं थाम लेती हूँ ,
कुछ अजीब सी हूँ,
सुकून बाँट कर इल्जाम लेती हूँ ,
पर मेरी तरलता को भी सहारा अनिवार्य है,
सो जब भी छलकना चाहूं बूँद २ सुरूर में
प्याला बन थाम जाना तुम ,
जब जरुरत हो मुझे ॥
मैं ही अरमानो कि उड़ान हूँ ,
मंजिल समझने कि शुरूआती पहचान हूँ ,
कहतें है कि मैं सच नहीं परछाई हूँ
, वो बात अलग है ,
कि हर किसी कि आजमाई हूँ ,
सो जब भी कोई हाथ पकड़ खो जाना चाहूँ ,
बस नींद बन गहराना तुम , जब जरुरत हो मुझे ॥
मैं ही हर फूल कि आस हूँ ,
मैं ही हर भँवरे कि प्यास हूँ,
इधर -उधर बस तेरी तलाश में ही डोलती हूँ ,
चाहे कुछ भी हो जाये ,
निगांहे बस तुम पर ही खोलती हूँ ,
मैं रुकूँ या चलूँ ,एक २ कदम
तेरे वजूद का सुबूत है ,
सो जब२ भी सिमटना चाहूं२ तेरे दामन में कंही,
बस चमन बन खिल जाना तुम ,
जब
मैं ही तेरे इन्तजार को रात भर मचलती हूँ ,
एक लम्हे में,
बूँद -२ पिघलती हूँ ,
दोनों के प्यार में ,
फर्क बस नजरों का आ जाता है ,
तेरा पल में फ़ना होना मोहब्बत ,
और मेरा उम्र भर जलना रौशनी कहलाता है ,
पर कहे कोई कुछ भी ,
बीच राह छोड़ न जाना ,
और ,जब जब भी दहकुं तेरी चाह में ,
परवाना बन गले लगाना तुम ,
जब जरुरत हो मुझे ॥
ख़ुशी हो या गम सबका अतिरेक हूँ मैं ,
ह्रदय के उद्गारों का सुन्दर अभिषेक हूँ मैं ,
जिंदगी के हर उतार -चढाव कि साक्षी हूँ,
हर पल प्रकट होने कि अभिलाक्षी हूँ ,
पर मेरा हर ज्वार तुमसे ही सम्बल पाता है
खुद का खुद से ही उबरना ,
मुझे भला कंहा आता है,
सो जब जब भी झाँकूँ ,
चांहो कि आँखों से ,
बस अश्क़ बन लुढक जाना तुम,
जब जरुरत हो मुझे ॥
गहन तिमिर का भी जश्न मन पाती हूँ मैं ,
रौशनी कि नई परिभाषाएं रोज गढ़ जाती हूँ मैं ,
निचोड़ दूंगी अपना अंतस ,
ताकि बना रहे तुझमे उजास घना ,
पहरो लम्बी इस यामिनी में ,
बस तुही रहे एक ख़ास बना ,
बस हर सांझ सुलगु जब मैं तेरे साथ को ,
दीपक बन जाग जाना तुम ,
जब जरुरत हो मुझे ॥
मैं ही प्रसन्नताओं का तीव्र उद्घोष हूँ
, मैं ही अन्याय का करारा रोष हूँ ,
न शब्द ना ,तर्क मुझे कभी बांधते है ,
मेरे विचार हर सीमा सहज ही लांघते हैं ,
पर मेरे विस्तार को भी चाहिए खुला आकाश ,
सो जब २ भी उड़ना चाहूं , कल्पना के परों पे , क
वि कि परवाज बन जाना तुम ,
जब जरुरत हो मुझे ॥
वो मैं ही हूँ ,
जो हर गली कूचे में तुझे खोजती है ,
जाने किस मोड़ पे मिल जायेगा तू , हर पल यही सोचती है ,
गुलशन हो या हो सहरा , जिंदगी कि खुशियां हो , या हो मौत का पहरा
ये तो तय है कि मेरा हर सफ़र ख़त्म तो तुझपे ही होगा ,
सो जब २ भी ठहरना चाहूं , किसी हंसी मुकाम पे ,
मंजिल बन मिल जाना तुम ,
जब जरुरत हो मुझे ॥
रमा का पद्म स्थान हूँ मैं ,
सुनेत्रों का मात्र उपमान हूँ मैं,
ब्रम्हा कि सृजक उत्पति हूँ ,
दलदल कि वैभवी संपत्ति हूँ,
केवल सौरभ कि न्यूनता ही मुझे थोडा हीन कर जाती है ,
कंटक घिरे पुष्पों को भी ,श्रेष्ठ स्थान दिलाती है ,
किन्तु प्रेम कंहा ये सब टटोलता है,
प्रेम तो स्वयं कि चाहत में भी बोलता है ,
सो जब जब भी सिमटू मैं अपनी ही शाम में ,
भंवरा बन आगोश में सामना तुम ,
जब जरुरत हो मुझे ॥
मुझे पाकर रौशनी भी थोडा और खिल जाती है ,
जंहाँ के हर जर्रे को, खुशनुमा पैरहन मिल जाती है ,
चाहत के लफ्ज खामोश आंखों से झांकते है ,
मन के इशारे ,बहुत लालच से ताकते हैं ,
एक चाहत है बस ,उजागर होऊं कभी सम्पूर्ण रूप में ,
सो किसी धुले अंक में आकाश के , इंद्रधनुष बन खिल जाना तुम ,
जब जरुरत हो मुझे ॥
जरुरत हो मुझे ॥