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अब जो बाज़ार में खड़े ही हैं

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Hindi Poetry

मान ली शर्ते साक़िया जाये
तर्क़े तौबा ही कर लिया जाये
होश आते ही फिर से हो ताज़ा
ज़ख्मे दिल किस तरह सिया जाये
ज़िन्दगी को बिना तेरे कैसे
ज़िन्दगी की तरह जिया जाये
कहके आये थे अब न लौटेंगे
अज्म चल तोड़ ये दिया जाये
पेड़ मिट्टी से हों जो शर्मिंदा
इस बुलन्दी का क्या किया जाये
अब जो बाज़ार में खड़े ही हैं,
आइये कुछ लिया दिया जाये
उनकी तलवार कसमसाती है
अबके किसका लहू पिया जाये

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