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अनोखा खेल
Hindi Poetry |
न नियम है न कोई मेल है
मची रेलम-पेल है
राजनीति ही ऐसा अनोखा एक खेल है।
एक दल के खिलाड़ी,
दूसरे में मिल जायें कब
ये भी इस खेल का अनोखा एक भेद है।
जाति बाँटो धर्म बांटो
हो सके तो नोट बांटो
इनकी चतुराई से तो, लोमड़ी भी फेल है।
एक-एक खिलाड़ी का
जश्ने अनाड़ी का
लुटने –लुटाने का लगा एक सेल है ।
इसे मारो, उसे मारो
वक्त पड़े तो खुद को मारो
पिटने-पिटाने का अकेला ये खेल है ।
हाथ जोड़ो पैर जोड़ो
चापलूसों के रिकॉर्ड तोड़ो
चुपड़ने चुपढ़वाने का अनोखा ये तेल है।