आज भी अच्छा हो हमको आप “ओवरलुक” करें
ये शहर है आईनों का मत इधर का रुख करें
ये दिखाएगा सचाई क्यूँ उजागर दुख करें
आप अब तक आसमां थे और हम पांवों की धूल
कोर्निश क्यूँ आप जाने आज यूँ झुक झुक करें
था हमारा साया तक भी आप को तो नाग़वार
आज भी अच्छा हो हमको आप “ओवरलुक” करें
अब इमारत की मुक़म्मल है मरम्मत लाजमी
सिर्फ कंगूरों पे मत बेकार की ठुक ठुक करें
छुप न पायेगी हक़ीक़त कर लो जो कारीगरी
सच खुलेगा आँकड़े सौ बार चाहे “कुक” करें
बारहा खा खा के धोखे भी नहीं खुलती है आँख,
मुंतज़िर अहले वतन फिर आप कुछ कौतुक करें
इन चिरागों के भरोसे रात कटने से रही
तेल पी जो बेतहाशा दम ब दम भुक भुक करें
उनके आगे बोलने की भूल कर जुर्रत न कर
आँख हो आतिश फ़िशानी वो जुबां चाबुक करें
आप लायक़ लाख हों मिलती न इससे नौकरी
लोग कहते है ये जादू आज बस ताल्लुक करें
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