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घूमते तलवार थे कायर लिए

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Hindi Poetry

ज़िन्दगी ने इम्तिहाँ अक्सर लिए
हमने भी पंगे मगर जी भर लिए

ट्रान्सफर पर ट्रान्सफर दर ट्रान्सफर
खूब घूमे बोरिया बिस्तर लिए

काटने को खेत तब सौंपे गए
जब मवेशी गाँव भर के चर लिए

दुपहरें तपती हुईं तय आँख में-
कीं, सुहानी शाम के मंजर लिए

आप अब चारागरी को आये हैं
मरने वाले तो कभी के मर लिए

उम्र गुज़री जाके तब जाना कहीं
आस्तीं में हम रहे विषधर लिए

बेच ही पाये न हम अपना जमीर
बुद्धिमानों ने बड़े नंबर लिए

युद्ध का परिणाम होता और क्या
घूमते तलवार थे कायर लिए

ले के वो चेले चपाड़ी आये यूँ-
ज्यों मदारी आ गया बन्दर लिए

सरसराहट सांप सी होती न क्यों
वो रहे होठों पे हरदम “सर” लिए

2 Comments

  1. Suresh Dangi says:

    Hats off to Khemka’s. Contemporary Topic. Enjoyed it completely.

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