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घूमते तलवार थे कायर लिए
Hindi Poetry |
ज़िन्दगी ने इम्तिहाँ अक्सर लिए
हमने भी पंगे मगर जी भर लिए
ट्रान्सफर पर ट्रान्सफर दर ट्रान्सफर
खूब घूमे बोरिया बिस्तर लिए
काटने को खेत तब सौंपे गए
जब मवेशी गाँव भर के चर लिए
दुपहरें तपती हुईं तय आँख में-
कीं, सुहानी शाम के मंजर लिए
आप अब चारागरी को आये हैं
मरने वाले तो कभी के मर लिए
उम्र गुज़री जाके तब जाना कहीं
आस्तीं में हम रहे विषधर लिए
बेच ही पाये न हम अपना जमीर
बुद्धिमानों ने बड़े नंबर लिए
युद्ध का परिणाम होता और क्या
घूमते तलवार थे कायर लिए
ले के वो चेले चपाड़ी आये यूँ-
ज्यों मदारी आ गया बन्दर लिए
सरसराहट सांप सी होती न क्यों
वो रहे होठों पे हरदम “सर” लिए
Hats off to Khemka’s. Contemporary Topic. Enjoyed it completely.
that is the beauty of poetry,you can relate it to any real life event!Thanks!