« चेहरा मेरे वतन का चूहे कुतर कुतर के | ***किन नयनों की रंगत से …*** » |
माली
Hindi Poetry |
मैने अक्सर मालियों को वेपारवाह देखा है।
इसलिए जुगनुओं को टूटते तारो में देखा है।
गर रखो इनका थोड़ा ख्याल,
चाँद-तारों में बदलते भी देखा है।
नासमझी में मालियों को लहरते भी देखा है
इसलिए मासूम सपनों को बिखरते देखा है।
अरे! नसमझो समझो
हमने अच्छे अच्छों को गुजरते देखा है ।