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***कफ़स में आरज़ू की….*

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Hindi Poetry

…कफ़स में आरज़ू की…

किसका साया मुझे जीने कि सज़ा देता है 
कफ़स में आरज़ू की .रूह को क़ज़ा देता है

पेशानी पे बहारों की .अलम लिखने वाली 
कौन मेरी आँखों को नमी की क़बा देता है

थी जब तलक साथ तो ज़िंदगी हसीन थी 
अब दर्दे हिज़्र मुझे .हर लम्हा रुला देता है

मेरे ख्वाबों के शबिस्तानों में ..रह्ने वाली 
बेवफा लौ मेँ पतंगा .खुद को जला देता है

बेवजह मेरे अश्कों की ..वज़ह बनने वाली 
कौन मुझे कफ़न मेँ साँसों की दुआ देता है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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