« ***कफ़स में आरज़ू की….* | जिसको दीवार समझते हैं न दरवाज़ा हो » |
रुको भी चैन से दो पल निहार लेने दो
Hindi Poetry |
रुको भी चैन से दो पल निहार लेने दो
नसीब प्यार का हमको सँवार लेने दो
नशा नज़र का तुम्हारी अभी तो ताऱी है
ठहर भी जाओ ज़रा ये उतार लेने दो
भटक रहा हूँ अभी मै वफ़ा की राहों मे
किसी मुकाम से खुद को पुकार लेने दो
लबों से शाखों को छू लो तो खिल उठें कलियाँ
ज़रा बहार पे आ तो बहार लेने दो
करो भी छाँव अता हमको अपनी ज़ुल्फ़ों की
सुकूं से पाँव यहीं पर पसार लेने दो