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आँखें

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Hindi Poetry

 मूक आँखों को बोलने दो jaal
जड़ सांसों को पिघलने दो
पलकों पर छाए गम के बदल को बरसने दो
खुद को कितना तड़पाओगी,जिन्होने तुम्हे तड़पाया कभी
उन्हें भी तड़पने दो ,गम के बादल को बरसने दो..

जो चाँद ढल गया तुम्हारी बेबसी पर ,और
जो अमावस्या बस गया तुम्हारे मन पर
उस चाँद को खिल लेने दो खुद को भी हंस लेने दो
गम के बादल को बरस लेने दो..

तुम्हारी मुस्कराहट जो खो गयी
और तुम पथ्थरदिल हो गयी
उस पथ्थरदिल को चटक जाने दो
गम के बादल को बरस जाने दो…

जो tare तुम गिना करती थी देखा करती थी
उन्हें तुम्हारे खोज में और न भटकने दो
गम के बादल …
बोहुत सुनी घर की दीवारों ने तुम्हारी सिसकियाँ
थोड़ा उन्हें भी सिसकने दो गम के बादल ..

लो आज नीले आसमान ने भी जोड़े हाथ
मुरझाई कलियाँ खिला दो
कब्र के अंदर ही सही
थोड़ा मुस्कुरा दो …
गम के बादल…..

4 Comments

  1. kusum says:

    Achhi kavita hai. Dil se.
    But why is the word ‘tare’ written in English, when the rest of the poem is in Hindi?
    Kusum

  2. Vishvnand says:

    sundar abhivyakti aur rachanaa kaa andaaz….
    Dono Manbhaaye …!

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